फूल सी बच्ची
थी वह एक फूल सी बच्ची,
मृदुल कोमल भाव की सच्ची ।
पिता से पाया था बस देह,
मिला नहीं कभी मन का नेह ।
बेटी बनना उसके लिए था अभिशाप,
बनी रही सदा पितृ वंश के आँखों में ताप।
पर निज माँ के मन बगिया की थी तितली,
कहते नाना जी मेरे आँखों की पुतली ।
तोतुली बोली लगता सबको कर्णप्रिय,
खंडित शब्द से नित बसंत जिए ।
नौनिहाल ननिहाल की थी प्यारी,
वहीं थी उसके जीवन की दुनिया सारी ।
घर बाहर हर के मन शाखा की थी फूल,
चंचल चिड़िया सी गाती थी झूल झूल ।
स्निग्ध स्पर्श से कर देती पाषाण को कोमल,
निश्छल स्मिता से खिलता बंद कमल ।
समय की गति बदली एक नई चाल,
फुलझड़ी के जीवन में हुआ परिवर्तित काल ।
धरती गगन का नाता छूट गया ,
जो था नेह का बंधन वह टूट गया ।
पर नारी का दोष कहूँ क्या दोषी ही था उसका भाग्य,
हरितमा थी उसके जीवन में हुआ आज बस पात-साग।
भेदभाव का चला पवन, दिया खुशियां तोड़,
थी जिसके आँखों की तारा, लिया वही मुखमोड़ ।
है कथन सत्य ,घर की प्यारी ही होती राजदुलारी,
जब हुआ पिता से त्याग, क्या करती बेचारी ।
देख हृदयकोर से टपकता था पानी,
विवश बाल्यावस्था की होती अलग कहानी ।
चंचला अपने चित में जाने कितने सपने संजोए,
काल्पनिक दुनिया में एक अनोखा महल बनाए ।
छलक उठता निज माता के नैनों से नीर,
पर थी वह बच्ची दृढ मनोबल की भी गंभीर ।
हे माँ काली! भले नहीं मिला पिता गोद अधिकार,
पर हे जननी! तेरी कृपा बनी रहे अपरम्पार ।
यहाँ नहीं, पर सृजित समृद्ध हो उसका निज संसार,
दुख विपदा न आए तितली के द्वार ।
उमा झा