फूल सी नाजुक बेटियाँ
फूल सी नाजुक मासूम होती हैं बेटियाँ
कायनात पर नियामत होती है बेटियाँ
संवेदनशील होता है स्वभाव निराला
संयमित मान मर्यादित होती है बेटियाँ
बेटों सी नहीं मिलती आजादी जीने की
बंदिशों की बेड़ियों मे जकड़ी हैं बेटियाँ
अवसर नहीं मिलता कभी आगे बढने का
बेटों से कहीं कम नहीं होती हैं बेटियाँ
आन बान और शान की प्रतिक होती हैं
घर आंगन का हार श्रृँगार होती हैं बेटियाँ
हर रिश्ते में पुरुषों का सदा रौब हैं सहती
माँ,बहन,पत्नी,बेटी रूप होती हैं बेटियाँ
गिद्ध सी बुरी नर नजर सदैव हैं रखते
फिर भी दोषी सदा ठहराई जाती हैं बेटियाँ
ईज्जत से सदा खेलता है मानव पौरुष
ईज्जत की प्रहरी मानी जाती हैं बेटियाँ
बेटी बचाओ बेटी पढाओ है अभियान चलाया
फिर भी गर्भ के अन्दर मारी जाती हैं बेटियाँ
नारी महोत्सव पर जो जन सम्मानित करते
एकान्त मे उन्हीं का शिकार बनती हैं बेटियाँ
कब तक जहाँ में बेटी जुल्मोसितम सहेंगी
कब सुख चैन स्वतंत्र सांस लेंगी ये बेटियाँ
कहते हैं जमाना बहुत बदल गया सुख
अब भी मनोरंजक साधन होती हैं बेटियाँ
दरिंदों की बुरी नजर से बच नहीं पाती
दरिंदगी का शिकार सदा होती हैं बेटियाँ
औरत ही औरत की यहाँ दुश्मन बन बैठी
दहेज की आग में जलाई जाती हैं बेटियाँ
मायके ससुराल में सभी का ख्याल रखती
फिर क्यों पराया धन कहलाती हैं बेटियाँ
फूल सी नाजुक मासूम होती हैं बेटियाँ
कायनात पर नियामत होती हैं बेटियाँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत