फूल बेजुबान नहीं होते
फूल कभी भी सुनो बेजुबां नहीं होते
अरमां दिलों के इनके बयां नहीं होते
छुपा लेते हैं ये ओश के रूप में आँसू
सबको लगता है कि फूल नहीं रोते
मुस्कुराते हैं सदा ये दूसरों को खातिर
अपनी खातिर फूल परेशां नहीं होते
कहीं काँटो पे तो कहीं ये किचड़ में उगें
अपनी किस्मत पे ये खपा नहीं होते
इन्हे मालूम है कुचले जांएगे किसी दिन
इसलिए फूलों के आशियां नहीं होते
सुबह तो होते हैं फूल पूजा की थाली में
शाम तक इनके कहीं निशां नहीं होते
जिसे भी देखिए वहीं फूल का है कायल
फूल फिर भी किसी की जां नहीं होते
कोई रुठे तो मना लेते है फूल उसे देकर
जोड़ते दिलों को ये दरमियां नहीं होते
सीख ले अगर कोई जिंदगी जीना इनसे
बस जाते हैं दिलों में फ़नाह नहीं होते
है सुनो “V9द” की भी फूलों सी दास्तान
फूल महकते हैं बस महक नहीं खोते
स्वरचित
V9द चौहान