फूल फूल और फूल
अरे ओ! फूल ,फूल को कहना ,फूल ने फूल कर ,
मुझ फूल को तुझ फूल को भेंट किया हूँ चूम कर।
तारा-गण, शशी, भान, प्रभा, डाल- पात झुक कर ,
करे कृतार्थ कली कमण्ड़ल को निर्झर नाले उतर कर।।
अरे ओ !फूल की पंखुड़ियों ,सब मिलकर गान करना ,
फूल शर्माकर भले ही झुक जाए, लेकिन मिलन करना ।
प्रेम वीणा संग सरस्वती गायन,उसके तार-तार में भरना ,
दिल में उतर जायेगी जन्नत,फूल-2को मिलनसार करना।।
अरे ओ!फूल की कनेरो, पीत पट धार करो अभिनन्दन ,
खुशबू फैलाना तिमिर निशा में, भुजंग लपटें ज्यू चंदन।
उतरे झरना ऊंचाई पर से कठोर पत्थर का करे मंचन,
रुदन कर्नन्दन क्रोत पक्षी, शावक का दिल ना हो खंडन।।
अरे ओ !फूल की महक मजहब में फैलाना महक को,
फूल को संदेश देना फुलकर, गलबाही में तुम चहक को ।
फूल से झुर्रियों को मिटाना,मन मेरा मुरादी मन्त्री मन ही मन को,
संदेश देना ,सिंहनी, गजहस्थिनी,मृगानैनी, हंसनी पिक बुलबुल को।।
अरे ओ! फूल की सुन्दरता उस फूल की सुन्दरता को फैलाना,
इस फूल की झुर्रियों को, उस फूल की दिल स्पर्शतासे मिटाना।
इस गिरे हुए फूल को उज्ज्वल प्रकाशित व शोभायमान बनाना,
पारस स्पर्श कर करें कंचन काया, अस्थि पिंजर में प्राण जगाना ॥
अरे ओ !फूल की लालिका चारों तरफ लाल-लालिमा बिखेरना,
नीशि वासर लाल ही लाल ,सुन्दरता, स्वच्छता को ही उड़ेलना ।
कवि कविताई कमी नजर आए, काली स्याही को लाल न करना,
सत्य का सपना,भले ना साकार लेकिन दीपक में बाती तो रखना ।।
सतपाल चौहान ।