” फूल खिले हर डाली ” !!
समय फिसलता बालू जैसा ,
हम देते हैं ताली !
घड़ी , प्रहर , रात – दिन , बीते ,
हाथ सदा हैं खाली !!
नियति से सब बंधे हुए हैं ,
हाथ कर्म की रेखा !
यहाँ वही सब घटता है जो ,
रहा सदा अनचीता !
यहाँ बहारें बाँधें मौसम ,
हम करते रखवाली !!
अपने हाथ यही केवल है ,
करे प्रबंधन ऐसा !
समय यहाँ रह जाए चकित सा ,
परिवर्तन हो ऐसा !
महका दें हम गुलशन सारा ,
फूल खिले हर डाली !!
समय पलों में गिरह लगाता ,
कभी गिरह है खोले !
उँगली पर है हमें नचाता ,
हँसता होले होले !
हम हो जाते तनिक बावरे ,
मन भी लगे बवाली !!
टिक टिक करती कभी घड़ी है ,
कभी रहे चुप चुप सी !
समय गति को कौन बांधता ,
बहती एक लहर सी !
चेत रहे हैं हम भी थोड़े ,
बनते नहीं सवाली !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )