********* फूलों से धरती खिली ********
********* फूलों से धरती खिली ********
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पावस से निर्मल हुआ,नीला सा आकाश।
फूलों से धरती खिली,बुझती तीक्ष्ण प्यास।।
बदली बरसी जोर से , भरे ताल तालाब।
देख – देख कर मन डरे,मौसम बहुत खराब।।
गौरी बैठी आस मे , घर आये भरतार।
तन-मन प्यासा जल उठे,उमड़े प्रीतम प्यार।।
कोयल बैठी डाल पर, सुनाए मधुर राग।
कोमल हृदय मचल उठे, कैसे सहे विराग।।
मनसीरत के ध्यान में, सुंदर रूप अपार।
नाव फंसी मँझार में, कैसे होगी पार।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)