फिसलती रही रेत सी यह जवानी
एक ग़ज़ल मय गीत
जिन धुन पर गाया जा सकता है।
धुन + 1.इशारों इशारों में दिल लेने ….
2 .जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा।
3. रहे तू सदा खुश जफा करने
4 बहुत प्यार करते है तुमसे …
वफा कर रहे है वफा करने
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(मुखड़ा)
फिसलती रही रेत सी यह जवानी।
सँभाले न सम्भलेकिसी के जवानी।
(अंतरा एक)
कभी बहती नदिया के सिमटे से धारे।
कभी तोड़ दे सब नदी के किनारे ।
वो चुपचाप बहती खबर ना किसी को
,कभी शोर करती जूँ दरिया का पानी।
फिसलने लगी …..
(दो)
न सुनती किसी की कभी कोई बातें।
न दिन का पता है न मालूम रातें।
सदा अपने मन की ये करती रही है।
कभी मिलती खुशियां कभी मिलती लातें।
मगर एक दिन बन ये जाती कहानी।
फिसलने लगी रेत सी यह जवानी।
(तीन)
बिता दिन दिये याद में जो किसी के।
न खाया न पहना , हुए ना किसी के।
मगर ये जवानी रही लौटने से।
पड़े फर्क कितना क्या इसका किसी के।
मगर बेवजह याद आती पुरानी।
फिसलने लगी रेत सी ये जवानी……………।
( चतुर्थ)
नही चाल इसकी तो रोके रुकी है।
बड़ी हस्तियां भी यहां फिर झुकी है।
नही कोई जीता जवानी से यारों।
सभी पर सदा यह तो भारी पड़ी है।
मचलती रही है सदा ही रवानी।
फिसलने लगी है रेत सी यह जवानी।
(पंचम)
मचलती लहरों को भुलाने लगा है।
ये दरिया मनो तो ठहरने लगा है।
सुबह का था सूरज जो ढलने लगा है।
कुछ ही पलों में बनेगा कहानी।
फिसलने लगी है रेत सी जवानी।
@कलम घिसाई