*फिल्म समीक्षक: रवि प्रकाश*
फिल्म समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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आदिपुरुष : रामकथा के साथ एक मजाक
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रामकथा के संबंध में चाहे लेखनी चले या फिल्म का निर्माण हो, अगर कलाकार की आस्था अनुपस्थित है तो प्रदर्शन में प्राण नहीं फूॅंके जा सकते।
आदिपुरुष फिल्म में सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें राम का रामत्व तथा रामकथा के प्रति आस्था के भाव का अभाव है। संवाद बदले जा सकते हैं, कुछ दृश्यों के साथ काट-छांट की जा सकती है; लेकिन समूचे फिल्म की आत्मा को तो कोई नहीं बदल सकता ? रामकथा की दिव्य चेतना और राम का प्रभामंडल कहीं नहीं दिखता। जिस त्याग ने राम को वास्तव में महापुरुष ही नहीं एक दुर्लभ देवत्व प्रदान किया, उसको पीछे छोड़ते हुए कथानक रावण के महिमामंडन के साथ आरंभ होता है। रावण शिव का उपासक दिखाया गया है लेकिन रामेश्वरम की स्थापना की ओर निर्माताओं का रत्ती भर भी ध्यान नहीं गया । इसे क्या कहें ?
शूर्पणखा का पक्ष, रावण की प्रतिक्रिया और सीता का हरण, तत्पश्चात युद्ध; जिसमें अंत मायने नहीं रखता बल्कि तीन घंटे किस वातावरण में दर्शकों को विचरण कराया गया है, यह महत्वपूर्ण हो जाता है।
सीता जी के कम वस्त्र हृदय को क्षुब्ध करने वाले हैं। हनुमान जी की अतुलनीय वीरता और बुद्धि की आभा जिस प्रकार से परिदृश्य से नदारद कर दी गई, वह भी कम आपत्तिजनक नहीं है।
अगर किसी को फिल्म बनानी है और उसमें मारधाड़, एक्शन और मसाला दृश्यों को लिया जाए तो किसी को भला क्या एतराज होगा ? ऐसी फिल्में तो सैकड़ों बन रही हैं। लेकिन कम से कम रामकथा के साथ तो ऐसा न हो कि घटनाओं को ही परिवर्तित कर दिया जाए, नई और मनगढ़ंत बातें जोड़ दी जाऍं। अगर ऐतराज न किया जाएगा तो कल को इस प्रकार के प्रयोग और भी ज्यादा मनमाने तौर पर सामने आ सकते हैं तथा इसका परिणाम रामकथा के प्रति जनमानस में अनास्था को उत्पन्न करने का हो सकता है ? भला कौन रामभक्त इस स्थिति को स्वीकार करेगा ? आदिपुरुष किसी प्रकार से भी रामकथा पर आधारित फिल्म कहे जाने के योग्य नहीं है ।
फिल्म की त्रुटियों की ओर क्रमवार ध्यान आकृष्ट करना भी आवश्यक है:
1) भरत और राम की त्याग वृत्ति की अनदेखी की गई है तथा सत्ता के प्रति उनकी अनासक्त भावना का दर्शन दर्शकों तक नहीं पहुंचाया गया है।
2) पुष्पक विमान अंत में तो जरूर दिखा दिया गया है, लेकिन पूरी फिल्म में भयावह चमगादड़नुमा आकृति ही पुष्पक विमान को दर्शाती रही।
3) रावण की मृत्यु अंत में केवल एक बाण से ही दिखाई गई, जबकि 31 बाण भगवान राम ने छोड़े थे ।
4) सुग्रीव अंगद आदि भयावह आकृतियों के दिखाए गए हैं। कम से कम उन्हें हनुमान जी जैसे तो दिखा दिया जाना चाहिए था।
5) राम, लक्ष्मण और हनुमान पूरी तरह फिल्म में निस्तेज दिखाई दिए हैं।
6) राम पर तो मानो बुढ़ापा छाया है ।
7) फिल्म डरावनी हो गई है। चमगादड़ को जरूरत से ज्यादा दिखाया गया है।
8) पूरी फिल्म कालेपन से घिरी हुई है ।
9) लंका की स्वर्णिम छटा अंत में तो दिखी, लेकिन पूरी फिल्म में नदारद है ।
10) सीता जी के प्रति रावण के प्रणय-निवेदन पर फिल्म निर्माता का ज्यादा समय खर्च करना अखरता है।
11) राम-सीता के प्रणय-दृश्य फिल्म में अप्रमाणित हैं। सीता जी के कम कपड़े कौन उचित कह सकता है ?
12) विभीषण का अनुचित रुप से लोभी चरित्र दिखाया गया है। उसकी पत्नी न जाने किस कल्पना से दृश्य में इस प्रकार का पुट देने के लिए उपस्थित हो जाती है।
13) विभीषण की पत्नी से ही सुषेण वैद्य का कार्य करा लेना निर्माता के दिमाग की उपज है। यह तथ्यों को विकृत करने जैसा है।
14) लंका के प्रति निर्लोंभी वृत्ति तथा मातृभूमि को सर्वोपरि मानना राम के व्यक्तित्व का एक गुण है। यह लंका-विजय के पश्चात प्रकट होना उचित रहता। फिल्म निर्माता ने विभीषण के साथ राम की मित्रता के समय ही इस प्रकार के संवाद अप्रमाणिक रुप से उपस्थित करके वस्तुतः बहुत ऊंचे दर्जे के विचारों को निस्तेज कर दिया है।
15) मेघनाद की रण में मृत्यु हुई थी। जल में कैसे दिखा दिया ?
16) फिल्म के अंत में रावण-वध के पश्चात सीता जी राम के पास दौड़ी-दौड़ी आ गईं, जबकि रामकथा में माता के रूप में उनकी उपस्थिति शोभनीय होती।