फिल्में
फिल्में !
पर्दे पर दिखाती हैं
समाज की वास्तविकता को
मानव की सभ्यता को
देश-दुनिया के रीति-रिवाज को
बदलते समाज को
अभावों में पिसती आम जनता को
नेताओं की सत्तालोलुपता को
युवाओं की बेकारी को
धनपिपासुओं की मक्कारी को
प्रेम की गहराई को
बिन प्रियतम के तन्हाई को
बनते-बिगड़ते रिश्ते को
घर-परिवार के किस्से को
सर्दी-गर्मी सहते किसानों को
ईमान खो रहे बेईमानों को
घर में उठती दीवारों को
गाँव और गलियारों को
नदियों की बहती लहरों को
भीड़ से भरे शहरों को
वन, पर्वत, झरना, नदियों को
पेडो़ं पे चहकती चिडियों को
फिल्में आईना दिखाती हैं
युग कैसा है बतलाती हैं।