फिर से
उस करुण वेदना को ,
भूला भी नहीं था ।
उन छलके आंसुओं को
पोंछा भी नहीं था ।
कि फिर से वो दैत्य
सुगबुगाने लगा है ।
हवा में जहर
फिर से घुलने लगा है ।
अभी तो सुनी थी
वो शायरन की दहशत
अभी ही तो देखा था
युवाओं की मैयत
क्रंदन की शोर
फिर से गूंजने लगा है
हवा में जहर
फिर से घुलने लगा है ।
✍️ समीर कुमार “कन्हैया”