फिर से शपथ
मैं गीता पर हाथ रख कर
आज खा रहा हूँ कसम
कि मैं कभी भी संविधान
की अवहेलना नहीं करूंगा
और भारत देश के प्रति
अपनी आस्था रखूंगा
चाहे मुझे कितना ही कष्ट
क्यों न हों, मैं अपने पद
की गरिमा को कलंकित
नहीं करूंगा !! वगेरा वगेरा
फिर भी कसम खाने के
बाद न जाने कितने
ही उच्च पद के लोग
निभा न सके अपने पद
की गरिमा को, न ही
संविधान के प्रति अपनी
आस्था को, चले थे घर से
चन्द सिक्को को लेकर,.
पर आज न जाने कहाँ से
भर गए उनके घरो के थैले
न निभा सके वो कसमे और
न निभा सके वो वादे,
बस अपना घर भर कर
काम यह ऐसा किया, कि
अपने परिवार के लिए
जन्मो जन्मो तक का धन
इकठा किया,
क्यों खाते हो झूठी कसमे
क्यों करते हो वफादारी का ढोंग
क्यों बहकाते हो लोगो को
क्यों खेलते तो भावनाओ से
क्यों नहीं रखते हो
मर्यादा और शपथ का मान
अजीत कुमार तलवार
मेरठ