फिर से मैं छोटी-सी बच्ची बन जाती
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काश एक जादू की छड़ी मिल जाती।
फिर से मैं छोटी-सी बच्ची बन जाती।।
गुड्डा-गुड़िया का फिर से ब्याह रचाती।
फिर से झूठी-मूठी का बारात सजाती।।
फिर से वही नटखट जिद्दी बन जाती।
मिठाइयाँ गुब्बारा मैं पापा से मँगवाती।।
फिर से भाई-बहन संग झगड़ा करती।
भागकर माँ के आँचल में जा छुपती।।
मामा जी के कंधे पर बैठकर घूमती।
मामी जी से जमकर मसाज करवाती।।
मौसी जी से बालों की चोटी गुथवाती।
दूध-मिसरी संग मलाई मिलाकर खाती।।
नाना-नानी से खूब कहानियां सुनती।
फिर से परियों की दुनिया में घूमती।।
फिर मैं दादी से कुछ पैसे ले लेती।
दादा जी के संग मैं मेले में जाती।।
सुबह-शाम दोस्तों संग मस्ती करती।
खट्टी-मीठी फिर से अमिया तोड़ती।।
बारिश के पानी में फिर से खेलती।
कागज का फिर से मैं नाव चलाती।।
फिर से मैं जी भरकर उधम मचाती।
जोर-जोर से दोस्तों संग शोर मचाती।।
थोड़ी चुलबुली,शरारती गुड़िया बन जाती।
अपनी मासूम अदा से सबको लुभाती।।
ना कोई उलझन,ना ही परेशानी होती।
निश्चित,निष्फिक्र जी भरकर मैं सोती।।
काश एक जादू की छड़ी मिल जाती।
फिर से मैं छोटी-सी बच्ची बन जाती।।
????—लक्ष्मी सिंह ?☺