फिर से एक मासूम कली
फिर से एक मासूम कली मसलाई होगी
किस ने ये सजा दिलाई होगी
अनजान सी जा रही होगी
उसकी राह किसीने रोक ली होगी
बेशर्मी से फिर अस्मत उसकी लुटाई होगी
वो किसी की बेटी किसी की बहन तो कहलाई होगी
कुचलकर तुमने दरिंदगी से हस्ती उसकी मिटाई होगी
मांग रही होगी भीख अपनी जिंदगी की
फिर भी न तुमने कोई दया दिखलाई होगी
खेलकर उसकी कोमल काया से
तुमने नीचता की दावत उड़ाई होगी
न भर सका जी इससे भी फिर तुमने भीड़ दानवों की बुलाई होगी
एक एक करके उस अबला की मजबूरी की हंसी उड़ाई होगी
सम्भल पाती वो असहनीय पीड़ा से तुमने नोचकर बोटियाँ उसके शरीर की स्वाद लेकर खाई होगी
भूखे श्वानों की भांति तुमने अपनी भूख मिटाई होगी
फेंककर फिर किसी सुनी सड़क गलियारे में तुमने निर्दयता दिखलाई होगी
प्राणों को उसके मिटाने की कायरता भी तुमने दिखलाई होगी
फिर भी तेज चल रही सांसो से वो बेचारी कितनी घबराई होगी
तड़पकर दो चार दिन तक उसने दी अपनी सांसो को विदाई होगी
बंद हो रही उसकी आंखे से लाखों बद्दुआएं तुमने पाई होगी
जन्मे जिस माता से कोख उसकी तुमने लजाई होगी
कहती होगी जाते जाते पाओ जन्म तुम भी नारी का
महसूस करना पीड़ा मेरी जो तुमने मुझे दिलाई होगी
तोड़कर लड़ियां सांसो की राह में बिखराई होगी।।
फिर से एक मासूम कली मसलाई होगी
किस ने ये सज़ा दिलाई होगी।।
“कविता चौहान”