”फिर से आया जब रविवार”
पौधों में ना डाला पानी
करते रहे अपनी मनमानी
दिन गुजरे बिल्कुल बेकार
फिर से आया जब रविवार ।
हटी नही किताबों की धूल
कर बैठे सोने की भूल
बचे रह गए अधूरे काम
हम करते रह गए आराम
दिन गुजरे बिल्कुल बेकार
फिर से आया एक और रविवार ।
फिर से आया एक और रविवार ।।
AK