फिर से आग लगी है!
बुझने की उम्मीद थी , मगर
फिर से आग लगी है!
चंदन वन के पेड़ आँधियों से
आपस में रगड़े।
घास-फूस ,पत्तियाँ सभी ख़ुश
देख-देख ये झगड़े।
इक चिंगारी लपट बन गई
किसकी हवा सगी है!
पर्दे के पीछे लाचारी भूख
गरीबी ढाँकी।
और दिखाई है हमने भारत की
अद्भुत झाँकी।
एक अधजला सपना लेकर
मन में टीस जगी है!
—©विवेक आस्तिक