फिर सुबह हुई
फिर सुबह हुई
खिड़कियां खुली
ताजी हवा छुई
महक गया मन
कहां हो तुम ?
फिर सुबह हुई
ओस मे नहायी
पत्तियां खिलीं
पुष्प मोहे मन
कहां हो तुम ?
फिर सुबह हुई
चिड़ियां चहक रहीं
दिशाएं बुला रही
चलो हवा के संग
कहां हो तुम ?
फिर सुबह हुई
घंटियां बजी
शंख ध्वनि हुई
आरती सजी
कहां हो तुम ?
फिर सुबह हुई
जागो उठो चलो
शुरू करो कर्म
समझो ये मर्म
कहां हो तुम ?
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297