” फिर लिखनी नई कहानी ” !!
रतजगा चाँद का पूरा ,
अब सूरज की अगवानी !!
हुई थकन देह की पूरी ,
पाया जी भर विश्राम !
अब दिवस जगाने आया ,
लेकर ललित ललाम !
सपनों की डोर है टूटी ,
फिर लिखनी नई कहानी !!
परिदृष्य बदल गए कल के ,
जो आंखों को ना भाये !
अबला की चीख पुकारें ,
रातों को नींद न आये !
हैं कुम्भकर्ण से नेता ,
अब हमको अलख जगानी !!
यहां टूटे सपने बिखरे हैं ,
है भीड़तंत्र का शोर !
अपने कुचले अपनों को ,
है कुछ पाने की हौड़ !
जिसकी लाठी भैंस सँभाले ,
यहां खूब चले मनमानी !!
यहां काम नहीं हाथों में ,
शिक्षण बोझ लगे है !
आश्वासन के मेले ठेले ,
हमको रोज़ ठगे है !
अब तक ना आंख खुली है ,
यह अपनी है नादानी !!
यों राजनीति लागे उजली ,
है अंदर मैल ही मैल !
उच्च सदन में शेष रह गया ,
हू तू तू का खेल !
आज हितों के संरक्षक की ,
ना महिमा जाए बखानी !!
कल का निर्णय अब कर लें ,
गुन लें कुछ निश्चय कर लें !
हम नहीं हाथ के मोहरे ,
दूजे की चाहत मर लें !
हो संरक्षण ऊर्जा का ,
खुशियां तो आनी जानी !!
बृज व्यास