फिर मुस्कुराएं
फिर मुस्कुराएं
चुप्पी प्रिये अब डराने लगी है
चलो आज से हम फिर मुस्कुराएं।
ज़माना है गुज़रा हमें गीत गाए
चलो आज से हम फिर गुनगुनाएं।
सारे ही ग़म तुम ख़ुद के मुझे दो
सारी ही खुशियां कदम तेरा चूमें।
कोई हो उलझन चलो हम मिटा दें
गुलशन में आओ फिर खिलखिलाएं।
फिर चांद-तारों को छूने को दौड़ें
ले हाथों में हाथ आसमां को निहारें ।
मोहब्बतों के सहारे बीते जिंदगानी
फिर चांदनी में चलो हम नहा लें ।
नयनों के मोती संभालो सखे तुम
कहीं ये धरा पर लुढ़क ही न जाएं!
चुप्पी प्रिये अब डराने लगी है
चलो आज से हम फिर मुस्कुराएं।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, लखनऊ, मौलिक/स्वरचित।