”फिर मुस्कुराऊंगा मैं”
कविता-21
बर्फ बन कर नहीं रहूंगा
बूंद-बूंद बन कर बह जाऊंगा मैं I
थोड़ा राह से भटक गया हूं मगर,
मंजिल तक पहुंच जाऊंगा मैं I
खामोश सा हो गया हूं मगर,
आवाज़ जरूर सुनाऊंगा मैं I
टूट गया हूं कुछ पल के लिए,
फिर भी खुद को समेट जाऊंगा मैं I
थोड़ी सिसकियाँ ले रहा हूं मगर,
उसी तरह फिर मुस्कुराऊंगा मैं I