फिर मंज़िल नहीं मिलती
पलक ख़्वाबों को निद्रा से कभी बोझिल नहीं मिलती
कदम रक्खे कहाँ कोई गली काब़िल नहीं मिलती
सभी ग़म भूलकर हँसना यही है ज़िन्दगी क्योंकी
हो जिनकी आँख में आँसू उन्हें महफ़िल नहीं मिलती
असर माटी का आ जाता है पौधों की ज़हनियत में
हो ग़र माँ वीर तो औलाद फिर बुज़दिल नहीं मिलती
खिले हों फूल बेशक और सफ़र भी हो हसीं लेकिन
मोहब्बत रास्तों से हो तो फिर मंज़िल नहीं मिलती