*फिर भी है समझाना *
माना तू ग्यानी है मानव ,फिर भी है समझाना ।
अभी चेत जा समय शेष है ,फिर होगा पछतांना।
बच कर कहाँ जाएगा प्यारे, मौत डाल गयी डेरा ।
उठ कर जरा देख दुवारे ,यमराज दे गया पहरा ।
अपने निर्मित चक्रव्यूह में,मत खुद ही फंस जाना।।
माना ————————————————–।1।
बची कौन सी मंजिल जिस पर,अभी पहुंचना वाकी है।
पथ जिस पर तू चलता जाए , वह केवल बैसाखी है।।
सच कहता हूँ चले जहां से , होगा मुड़कर आना ।।
माना—————————————————-।2।
बढ़ी सुहानी हवा की जिसको, तूने जहर पिलाया ।
नीर जिसे अमृत कहते हैं , उसको भंग खिलाया ।।
हंसमय सभी दिशाओं का , बदल दिया है बाना ।।
माना—————————————————-।3।
नभ-तल काँप रहा है प्रतिपल ,विकास अंड सेवन से।
नहीं सुनायी देता तुमको , कम्पन —और –क्रंदन से ।
कतिपय नहीं सुहाता , कान में तेल डाल सो जाना ।
माना—————————————————–।4।
बड़ा विचित्र है तू विज्ञानी ,है खेल अनोखे रचता ।।
पकड़ गया यदि किसी मोड़ पर, फिर कैसे तू बचता।
या अच्छा होगा भँवर जाल में, फ़ंसकरके रह जाना।।
माना——————————————————-।5।