फिर नज़र में
तरही ग़ज़ल
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फिर नज़र में समाया हुआ है
अब्र बनकर वो छाया हुआ है
ख़्वाब जिसके लिए मुन्तज़िर थे
वो हक़ीक़त में आया हुआ है।
उनसे मिलकर मेरे दिल का कूचा
“रोशनी में नहाया हुआ है”
गर्दिशे वक़्त में अस्ल चेहरा
दोस्तो का नुमाया है
ये क़यामत नहीं है तो क्या है
जो मेरा था पराया हुआ है
ख़ुद को ही भूल बैठा हूँ उसने
जाम ऐसा पिलाया हुआ है
फिर ‘असीम’ आपको भावना की
शायरी ने लुभाया हुआ है
✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’