फिर झूम के आया सावन
आनन्द विभोर छाया सावन
जीवन सुख बरसाया सावन
खुशियों बहार लाया सावन
सब के मन भाया सावन
फिर झूम के आया सावन।
दादुर मोर पपीहा नाचे
घुमड़ – घुमड़ कर मेघ बाजे
चमचम करती तड़ीत साजे
हर्षित होता सबका मन
फिर झूम के आया सावन।
कल-कल निर्झर बहते जाते
उछल – कूद कर खुशी मनाते
मधुर संगीत का राग सुनाते
प्यारा – प्यारा मन भावन
फिर झूम के आया सावन।
सर वापी सब लबालब है
सरिता भी अब उफान पर है
भीगे तरुवर झूम रहे हैं
भरकर मस्ती और मगन
फिर झूम के आया सावन।
इंद्रधनुष की छटा निराली
धरा पर दुर्वादल हरियाली
बना रहे हैं भ्रम की जाली
जिसमें रमता जाता मन
फिर झूम के आया सावन।
कावड़िया भगवा धारण किए
हाथों में सजा कावड़ लिए
झूमते गाते सब आनन्द भये
परिमण्डल छाई ओम् गुंजन
फिर झूम के आया सावन।
रिमझिम तो कई तेज धार
आती-जाती हल्की फुहार
दिन-भर में कई बार बार
बरसता जाता है सावन
फिर झूम के आया सावन।
धरती की प्यास बुझाया सावन
कृषको की चिन्ता मिटाया सावन
सुख के राग सुनाया सावन
हरियाली बहार लाया सावन
फिर झूम के आया सावन।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’