फिर जल गया दीया कोई
दूर कहीं निशीथ में
एक तारा टिमटिमाया
फिर और एक
और फिर एक
इस तरह गगन भी
मानो दीवाली पर
चिरागे-रोशन कर
जहाँ को बधाई
दे रहा था
वहीं उमंग ले मन में
तेज कदमों से
मैं भी जा रहा था
घर की ओर
तभी मुझे एक चेहरा
बुझे दिए की तरह
बैठा दिया दिखाई
बोला- साब लेलो ये गुड़िया,
ये हाथी, ये बड़ा दीपक,
ये कुल्हड़, ये घोड़ा
पहले सोचा कि
करूँगा क्या इनका
मिट्टी के इन जीवों को
मिट्टी से बच्चे पल में
तोड़ डालेंगे
पर देखा जब उसका
बुझा चेहरा तो
मैंने खरीद डाले यूँही
उसके मिट्टी के खिलौने
घोड़ा भी खरीदा तो
खरीद डाला हाथी भी
दीपक खरीदा तो
खरीदी कुल्हड़ भी
देकर उनकी कीमत
ज्यों देखा मैंने चेहरा उसका
तो लगा वहाँ जैसे
उसके अँधेरे से भरे
मन के किसी कोने में
हजारों दीये
जगमगा उठे हों
देख उसके
चेहरे की रोशनी को
लगा ऐसा जैसे
अँधेरी दिवाली में
फिर जल गया हो
एक बुझता दीया कोई
सोनू हंस