फिर गई है उनकी नज़र
2121 + 2212
फिर गई है उनकी नज़र
बढ़ गया है दर्दे जिगर
बेवफ़ाई शरमा गई
झुक गई हया से नज़र
साँस कैसे लूँ मैं यहाँ
घुल गया फ़िज़ाँ में ज़हर
वो बढ़ा रहे सिलसिले
कर रही दुआएँ असर
हमसफ़र न अब रूठिये
ख़त्म होने को है सफ़र
मौत का ही खटका रहा
ज़िन्दगी में आठों पहर