फिर कब मिलेंगे
ज़माने बीत गये
हम दोस्तों को बिछड़े हुये
जी भर कर
एक दूसरे से लिपटे हुये ,
वो भी क्या दिन थे
हर पल रंगीन थे
कभी नही रहते हम
एक दूसरे के बिन थे ,
संग खाना संग पीना
संग सोना संग जगना
संग पढ़ना संग लड़ना
संग रोना संग हँसना ,
चाहतों की उड़ान थी
हाथ में कमान थी
ऊँची छलांग थी
नही कोई थकान थी ,
वक्त के साथ हम भी भागे
बुनने लगे भविष्य के धागे
ज़िन्दगी में बढ़ना था आगे
इसिलिए सोये कम ज्यादा जागे ,
जो पाना था पा गये हैं
अब एक मोड़ पर ठहर गये हैं
वक्त की चाल को समझ गये हैं
पुरानी यादों में सिमट गये हैं ,
अरसे बाद जब हम सब मिलते हैं
सारी यादों को एकसाथ सिलते हैं
हाथ पकड़ साथ साथ चलते हैं
लेकिन फिर सब उदास हो कहते हैं
देखो हम फिर कब मिलेंगे ?
देखो हम फिर कब मिलेंगे ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 06/07/2020 )