फिर एक समस्या
हर रोज एक उलझन बनी रही
फिर एक समस्या खड़ी हुई
सब कुछ था सीदा सादा सा
बनती हुई बाते बिगड़ गई
हर पहलू को जब समझाया तो
उनके पहलू कुछ और ही थे
जितना संजीदा मैं खुद था
उतने संजीदा वो भी थे
कुछ कागज के टुकड़ों में
एक सुलझी गुत्थी उलझ गई
उनको अपना कुछ कहना था
मेरा अपना भी तो कुछ हित था
शायद दोनों ने ज्यादा सोच लिया
इसलिये ये उलझन बनी रही
फिर एक समस्या खड़ी हुई