फिर एक कविता बनती है
मन से मन के तार जुडें तो,
फिर एक कविता बनती है,
सपनो का संसार बने तो,
फिर एक कविता बनती है…
विश्वास समर्पण हो मन मे,
कोई और न फिर प्रत्याशा हो,
नेह के ऐसे रिश्तों पर से,
फिर एक कविता बनती है…
गठरी जब दुख की बन जाऐ,
आशा की बाती बुझ जाए,
नैराश्य का जब आच्छादन हो,
फिर एक कविता बनती है….
जब मुख में बोल न बनते हों,
जिव्हा पर आकर थमते हों,
लिखकर मन के भाव बहें तब,
फिर एक कविता बनती है…
©विवेक’वारिद’*