फिर उठ जाइये
सुनों देश के किसानों,
भारती के नौनिहालों,
धरती पुकार रही,
फिर उठ जाइये।
कड़ी धूप ताड़ रही,
हौसले को फाड़ रही,
मात सूर्यदेव को दे ,
धरा हरसाइये।
जहाँ चकाचौध भरी,
जिंदगी है व्यस्त पड़ी,
अन्नदाता उनके हैं,
बात मान जाइये।
महान है जन्मदाता,
रक्षा करे हैं विधाता,
अन्न दाता श्रेष्ठ है ये,
आप जान जाइये।
आप ना लागत जोड़े,
उपज हो चाहे थोड़े,
खेत खलिहान अब,
फिर से सजाइये।
मेघ बड़े दूर रहे,
धरा ताप खूब सहे,
सींचने अवनि अब,
पसीना बहाइये।
क्षुधा राह ताक रही,
महंगाई फाँक रही,
नाचे भूख नंगी कहीं,
इज्जत बचाइए।
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अशोक शर्मा,लक्ष्मीगंज,
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश