फितूर बना फितरत
कैसी फितरत हुई इंसान की जैसे रक्त प्यासे हैवान की
टुकड़े -टुकड़े में काटकर भावशून्य हो जाता इंसान है
प्यार के नाम को कर देता बदनाम है, सब भूल जाता इंसान है अपने फितूर को फितरत का नाम देता इंसान है
गली-गली हवस से भरा पड़ा इंसान है, इंसान रुपी हैवान है
नजर फेरता जुल्म से, आहत करना फितरत बना इंसान का
जख्म दे रहा मुस्कुराहटों के रूप में , हंस के टाल देता किसी के दर्द को
कैसी फितरत हुई आज के इंसान की, इंसान रुपी हैवान की
चंद लोगों की गलतीयां शर्मशार करती इंसानियत के नाम को
हैवानियत से भरी पड़ी इंसानियत की सोच है
फितरत को बदनाम करता फिर रहा इंसान है, फिर रहा इंसान है