फितरत
फितरत बदल बदल के वो मशहूर हो गया
मुखिया से आज हर किसी का नूर हो गया
फितरत अरम अगर हो नचाता है आदमी
ख़ुद ख्याति देख आदमी मग़रूर हो गया
फितरत बुरी ईमान को डगमग बना रही
जिसके भी सिर चढ़ी नशे में चूर हो गया
फितरत है सब्र की मेरी चाहे भी जो कहो
ये सब्र इल्म दुनिया का दस्तूर हो गया
फितरत की दाद देते हैं दुश्मन मेरे सभी
मनमीत मन में जो गिला काफ़ूर हो गया
मनमीत