फितरत
परत दर परत बिछा रखी है अपने दिल पर,
उन में छुपे राज को कोई कैसे समझे?
यकीन करना मुश्किल है तुम्हारी बातों पर,
भला कोई तुम्हारी फितरत कैसे समझे ?
परत दर परत बिछा रखी है अपने दिल पर,
उन में छुपे राज को कोई कैसे समझे?
यकीन करना मुश्किल है तुम्हारी बातों पर,
भला कोई तुम्हारी फितरत कैसे समझे ?