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3 Jul 2023 · 1 min read

फितरत

फितरत

बदल गए तुम
ठीक
उस तरह
जैसे बदलता है मौसम
हर नए मौसम की आहट पर
या फिर जैसे बदलता है
गिरगिट रंग अपना
क्योंकि
वह परिवेश की अनुकूलता को
झट समझ लेता है
और
अपना रंग भी ठीक वैसा ही कर लेता है तुमने अपनी भाषा बदली
रूप बदला , स्वरूप बदला
लिबास बदला , वाणी बदली
यदि बदली होती फितरत अपनी
तो
यह सब बदलने की जरूरत न होती
जरूरत न होती ।।

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