फितरत
फितरत
बदल गए तुम
ठीक
उस तरह
जैसे बदलता है मौसम
हर नए मौसम की आहट पर
या फिर जैसे बदलता है
गिरगिट रंग अपना
क्योंकि
वह परिवेश की अनुकूलता को
झट समझ लेता है
और
अपना रंग भी ठीक वैसा ही कर लेता है तुमने अपनी भाषा बदली
रूप बदला , स्वरूप बदला
लिबास बदला , वाणी बदली
यदि बदली होती फितरत अपनी
तो
यह सब बदलने की जरूरत न होती
जरूरत न होती ।।