फितरत है इंसान की
मतलब की दुनिया में अब तो कद्र नहीं अहसान की
वादे करना और मुकरना फितरत है इंसान की
मीठे मीठे शब्दों से ये
अक्सर मधु रस घोलेंगे
मन में जलती ज्वाला होगी
किन्तु अमिय सा बोलेंगे
इनके स्वार्थ सिद्धि के आगे कीमत क्या है जान की
वादे करना और मुकरना फितरत है इंसान की
वर्षों पहले जो होती थी
इंसाँ में वह बात नहीं
दुनिया में सब लाभ देखते
रिश्तों में जज़्बात नहीं
कौड़ी के भी नहीं बराबर कीमत रही ज़बान की
वादे करना और मुकरना फितरत है इंसान की
काँटे लेकर फूल जगत में
सुंदर सुंदर खिलते हैं
अभिनय में माहिर जग वाले
स्वांग रचाकर मिलते हैं
बगुले मछली से करतें हैं बातें अब तो ज्ञान की
वादे करना और मुकरना फितरत है इंसान की
– आकाश महेशपुरी
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश