फितरत को पहचान कर भी
जीवन में मिलने वाला हर शख्स
होली-सा लगता है…
कोई रंग बदल लेता है……
कोई अपने रंग में रंग दुनिया रंगीन कर देता है।
रंग बदलने वालों से दूरी बना कर रहना…
फितरत उसकी ऐसी…
रंग मे रंग तो नही सकते कभी..
इल्ज़ाम पर इल्ज़ाम कसता है।
सच है कि व्यवहार बदल लें
पर फितरत कभी बदल नहीं सकता।
आदत जिसकी ऐसी हो..
मन की मन से मिलनसारी मधुर हो…
रंग में रंग जाएं मिलने वाला वो…
तो धरा पर ही स्वर्ग खडा़ करता है।
होली के रंगों सी विभिन्न रंगीन दुनिया में…
सम्भल का चलना ही पड़ता है,
फितरत को पहचान कर भी मुस्कराना पड़ता है।
सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान