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9 Sep 2018 · 7 min read

फिटनेश हाथी का

फिटनेश हाथी का
: दिलीप कुमार पाठक

परिवहन विभाग की स्थिति बड़ी गजब है। बगैर बिचौलियों का कोई काम ही संभव नहीं। पिछले चार वर्षों से साल में कम से कम एक बार तो जरूर ही इन बिचौलियों के चक्कर में आना पड़ता है अपने हाथी का फिटनेश प्रमाण पत्र बनवाने।
फिटनेश प्रमाण पत्र का सरकारी शुल्क है ३४५/- रूपया. २०१३ में १२००/- रूपया इन बिचौलियों को देना पड़ा था। २०१४ में कुछ विलम्ब हो गया था तो दो सौ रूपया दण्ड के साथ १४०० रूपया में मामला पटा था। २०१५ में १६००/- में। २०१६ में तो हद ही हो गयी थी। पूरे १८००/- का मांग कर बैठे। जबकि सरकारी शुल्क वही ३४५/- रूपया है।
यह कि ” पंडित जी महंगाई बढ़ गया है, बाबु लोग की हिस्सेदारी बढ़ गयी है।”
डी टी ओ ऑफिस के बिचौलिया हैं महेन्दर ठाकुर. बुजुर्ग हैं, बड़े ही भद्र दिखते हैं। बड़े-बड़े ट्रान्सपोर्टर सब इनके आगे नतमस्तक। आखिर क्यों न रहें ? डी टी ओ बाबु इनके पॉकेट में जो हैं।
फिटनेश की प्रक्रिया है, पहले ३४५/- रूपये की रसीद कटा लें। उसके बाद लाइन हाजिर हों अपना रामपियारा हाथी को लेकर। अब कितनो सम्हाल कर रखेंगे तो उसे शोरूम से निकाल कर तो ला नहीं रहे हैं। डी टी ओ बाबु एसी में बैठने वाले आदमी हैं आपका हाथी उनकी नजर से कैसे पास हो पाएगा ? वह सम्भव ही नहीं।
तो इस प्रक्रिया से बचने के लिए श्रीमान महेन्दर ठाकुर जी से संपर्क किजीए। पिछले साल तक तो परिवहन विभाग के पिछवाड़े लकड़ी का गुमटीनुमा इनका फुटपाथी बिचौलिया चैम्बर तक हुआ करता था। मगर अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत इनका चैम्बर इस साल हटा दिया गया. मगर ये वहीं डटे हुए हैं। एकदम हृदयवान दिखते हैं। पहले तो अकेले रहते थे मगर अब इनका बेटा भी इनके साथ रहता है।
” देखिए पंडित जी ज्यादा बुझा रहा है तो हम कागज बना देते हैं. उसका मात्र ५०/- रूपया ज्यादा लेंगे। चल जाइए साहेब से मिलने। पता चल जाएगा।”
हम तो सन्न ही रह गये।
” का सोंच रहे हैं, एकदम टाइमे पर पहुँचिएगा त लेट फाइन भी देना ही पड़ेगा. ३४५/- सौ सरकारी फीस और २००/- रूपया का एकदम पक्का रसीद मिल जाएगा। बाकि तो……
टेबुल से गुजरने का हिसाब है।”
” कुछ कम किजीए।”
” बाबा का समझते हैं हम आपसे ज्यादा लेंगे……”
” फिर भी, पिछले साल तो…….”
” पिछला साल दाल कइसे खरीदते थे ? महंगाई बढ़ा है कि नहीं….. ”
” मगर सरकारी फीस तो…….”
” देखिए बाबा, १८००/- से १७९९/- तक नहीं होगा। बाबु लोगों का हिसाब एकदम फिक्स रहता है। इसमें हमरा कुछ ज्यादा नहीं बचेगा।”
हम और क्या कहते ? चल भाई ठीक है।
” इ फिटनेश कल आप ११ बजे के बाद जब चाहें ले जा सकते हैं।”
” ठीक”
और हम का कहते ?

तो ये बात २०१६ की है। अब है २०१७। २०१७ में परिवहन विभाग का ढोंग ही अलग है। फरवरिए में फरमान जारी हो गया कि सभी वाणिज्यिक वाहनों में स्पीड गवर्नर लगाना अनिवार्य है। स्पीड गवर्नर मतलब? बहुत दिन तक तो इसका मतलबे समझ में न आया। मगर फिटनेश की तिथि नजदीक आती गयी।
“ बगैर स्पीड गवर्नर लगाये बाबा इस बार हाथी का फिटनेश संभव नहीं। ये लिजीए डीलर का कार्ड।”
कॉर्ड लेकर चलित संपर्क से संपर्क किया तो स्पीड गवर्नर लगाने का अस्टीमिट बताया लगभग ७,०००/-।
शान्त हो गया क्योंकि एक महीना और बच रहे थे। हाथी कोरहाग हो रहा था। हाथी से एक तो अपनी पंडिताई को क्षति पहुँचती है। दूसरे लगभग हाथी का मेंटेनेंश लगभग पंडिताई पर ही निर्भर है। क्योंकि हाथी तो प्रोफेशनल है, हाथी का पिल्हवान प्रोफेशनल रहे तब न।
इतने में एक अनुष्ठान करने का बुलावा आ गया। पाँच दिन में पन्द्रह हजार उपद्रवी परिवेश को अनुकूल बनाने हेतु। बड़ा सफल अनुष्ठान रहा।
मेरे हाथी का भी फिटनेश बनवाने की व्यवस्था बन गयी। मगर स्पीड गवर्नर के डीलर का कॉर्ड ही भूल गया। उस तरफ से मिजाज इसलिए भी हड़क रहा था क्योंकि हाथी तो अपनी ऐसे ही ठुमुक-ठुमुक कर चलती है। हाथी का स्पीडोमीटर १०० से ज्यादा नहीं है। इसका संतुलित गति ३० से ५० का है। तो फिर ये स्पीड गवर्नर क्यों? स्पीड गवर्नर तेज गति वाहनों में अनिवार्य करना चाहिए। रास्ते के क्षेत्रपालों के पास गति की पहचान करने वाले यंत्र जो रहते हैं, लगभग बिगड़े हालात में रहते हैं। नगरों में जहाँ नो इन्ट्री रहती है, वहाँ कोई सूचना पट नहीं होते। अन्जाने आप घुस ही जाएँगे। तब आपकी ये फजीहत करेंगे कि बस। ट्रैफिक सिग्नलों पर सिग्नल लाइट फेल मिलेंगे। ट्रैफिक वाले भिसिल बजाएँगे, हाथ से इसारा करेंगे और फिर मुल्ले की तलाश में रहेंगे। यही तो होता है।
खैर, हमारी कोशिश यह रहती है कि हम बनाये गये नियमों का अनुपालन करें।
वाहन उपकरण दुकानों में स्पीड गवर्नर का पता लगाने लगा। तीन डीलरों का पता चला, जिनका परिवहन विभाग से टाई-अप था। सभी वितरकों के मनमानी शुल्क। कोई कुछ तो कोई कुछ। ऑनलाइन में अलीबाबा में स्पीड गवर्नर मेरे हाथी के अनुकूल ढाई-तीन हजार तक। मगर परिवहन विभाग से टाई-अप वितरकों से ही खरीदा गया स्पीड गवर्नर मान्य। मजबूरन न्यू इंडिया से स्पीड गवर्नर खरीदने का मन बनाया। क्योंकि ये विश्वसनीय लग रहे थे। उनसठ सौ पचास में डील हुई। कहा गया पेमेंट किजीए। हम पेमेंट के लिए कार्ड बढ़ाये। बस वितरक महोदय तिड़कने लगे।
“ एटीएम से नकद पैसा निकाल के आइए बाबाजी। यह तो हमने कच्चे बील का हिसाब बताया था। पैंतालिस सौ के करीब का मशीन और उसका कम्पलीट कीट आता है। बाकि के खर्चे इसके सर्टिफिकेट और इसको लगाने में लगते हैं।”
“ नहीं, हम तो कॉर्ड पेमेंट ही करेंगे।”
“ तब पक्के बील का पैंसठ सौ देना पड़ेगा। जी एस टी का भी हिसाब बैठाना पड़ेगा।”
“ इतना में ही……..”
“ कहाँ से होगा? मिस्तिरी भी बुलवा लिए और अब ये बाबा……
मिस्तिरी को वापस आने कहो रे। फोन लगाओ। कहीं लगाने उगाने लगा तो…….। एकबार सोंच लिजीए बाबा। दूबारा आइएगा तो आपपर रिस्क नहीं लेंगे।”
खैर, वहाँ से चला अपने हाथी की तरफ। तब बारिस होने लगी थी। किसी तरह भींगते-भाँगते हाथी के पास पहुँचा तो स्पीड गवर्नर लगाने वाला मिस्तिरी हाथी के बगल वाले पेंड़ के नीचे बारिस से बचने की व्यवस्था में लगा था।
“ क्या निर्णय लिये? पइसा जादा माँग रहा है। ये सब यही करता है। जो आता है, चाहता है, उसे एकदम मचोड़ लें। हम आपको पचपन सौ में लगा देंगे।”
“ठीक भाई, लगा दे।”
“ मगर नगदा-नगदी देंगे न।”
हम भी उब गये थे।
“ ठीक है। “
उसने झोले से मशीन निकालकर दिखलाया। उसपर एम आर पी ७५००/-लिखा था। वो अगले दिन लगाने के लिए बोला। कहा, “ इसका सिरियल नम्बर तो इस दूकान के नाम चढ़ गया है। कल अपने बाबु के पास से दूसरा लेकर आएँगे।”
दूसरे दिन ये दूसरा मशीन लेकर पहुँचा। कहा, “ वो मशीन तो मिला नहीं। ये दूसरा है। है उसी कम्पनी का। मगर उससे इसका एम आर पी कम है। ७२००/- सौ है। इसलिए आप इसका ५२००/- दिजीएगा।”
“ तब भाई, पाँच हजार में दो।” हमको भी मोल-तोल करने का कुछ सह मिल गया था।
“ नहीं बाबा कुछ बचेगा नहीं। दुइए सौ अपना बचेगा।”
“ नहीं”
“ अच्छा चलिए ५१००/- दे दिजीए।”
“ अभी मशीन रख लिजीए। हम साम में आकर लगा देंगे। छपरा-टाटा से मेरी एक रिस्तेदार आ रही है, उसको रिसीव करने जाना है।”
“ चलो ठीक है।”
उसने स्पीड गवर्नर लगाने में और परिवहन विभाग का प्रमाण पत्र लाने में दो दिन का समय लगा दिया। तबतक मेरा धड़कन बराबर धड़कता रहा।
तब फिटनेश के लिए भेंडर के पास पहुँचा।
“ देखिए बाबा, हम आपसे कभी जादे नहीं माँगते हैं। अब का करें, साहब लोग का पेटे एतना बढ़ गया तब। हॉप मूँह करके बैठा रहता है। इ मोदी से इ लोग आउ सहक गया है। हम केतना बताये थे आपको फिटनेश का?”
“ कहाँ बताए थे ददा? पिछले साल तो तेरह सौ में बना दिये थे।”
“ इ साल तो बबा तेइस सौ देना पड़ेगा।”
“ क्यों इतना?”
“ सब व्यवस्था अब बदल गया है। सब ऑनलाइन हो गया है।”
“ गज़ब तरह से आपलोग बरगलाते हैं।”
“ ऐसा किजीए। इ लिजीए कागज, फॉरम भी लिजीए हम ही भर के दे भी देते हैं। साहब के पास आप ही चल जाइए। पता चल जाएगा।”
ऐसा नहीं है कि साहब के पास हम गये ही नहीं हैं। कई बार गये हैं। काश! कभी ये साहब मेरा जजमान बन जाय। भेंडरों से मुक्ति मिल जाता।
“ का सोंच रहे हैं? आपके हाथी के फिटनेश का समय एकदमे नजदीक आ गया है। कल आइएगा तो लेट फाइन भी भरना पड़ेगा।”
सोंचा चलो ठीक है। कोरहाग पाले हैं तो भुगतना भी हमें ही पड़ेगा। उसके फिटनेश का ख्याल तो रखना ही पड़ेगा।
——–::———

टिपण्णियाँ:

उर्मिला पाठक: काश ब्राह्मण के पास कोई मंत्र होता तो ऐसे लोगो के उपर मंत्र प्रहार करके समस्या का समाधान हो जाता।

नरेश पाठक: सब.होता है, पर ब्राह्मण दयालु होता है।

हरि प्रसाद खरबार: Nice babaji

रितेश आनन्द: Sir Ye kahani to roj Ki hai Lekin aapke lekhni ke dwara ki bat hi kuchh or hai…. Lajabab

कमलेश पुण्यार्क गुरुजी: ऐही डरे हम तो हाथी पलबे न करी दिलीप भाई। अपन दुपहिवा एभनवें ठीक हे। 35 साल पुरान। न आरटीओ के झमेला न डीजल-पेट्रोल के बढइत दाम के चिन्ता।

विजय कुमार: आप जहां रहेंगे यही सब सिखाएंगे गया में भी स्कूटर स्टैण्ड में स्टेशन पर तीन रूपया का बोर्ड लगा ठाठ से दस रूपया वसूला जा रहा है।
मैं: चलता तो यही सब है सर जी. न चलेंगे तो फिर भिड़ीए. लिखना भी लड़ना ही हुआ.

संजीव वक्थरिया: ekdam

रविशंकर मिश्र: अंधेर नगरी आ चौपट???
मैं: वह भी कह दिजीए, राजा त नहिंए होगा….

अजय अग्रवाल: Dilip ji Aap Apne Vicar ko Kul Kr Vayakt kare.
Is ke leye aap kis ko dosi mante ho.

मैं: दोषी किसको मानें ? बस कहानी लिखते चलूँ. मेरे पास कलम है, फरसा नहीं. न रखने की इच्छा है.

अजय अग्रवाल: Yesa Kon Sa Kaam H Jo Bina Rupye-Paisa ka Hota hai Sarkari Vibag me.Aap Hame Bta de.

मैं: वह तो हम बता ही रहे हैं. आप भी कुछ बताइए.

अजय अग्रवाल: Aap 200-300 Rs Dene me gbra gye.un logo se puche jinhone kitne karch kr ke apna ruka hua kaam karwaya hai
Un logo ka dard kon jane

मैं: उनलोगों का दर्द हम महसुस कर रहे हैं. तभी अपने दर्द को प्रकट किए हैं.

अजय अग्रवाल: Drd Prakt Krne Pr Kuch Fayda Hua Kya???

मैं: आप भी अपना विचार रख रहे हैं, यही और क्या ……
आप मैं जो लिखा, उसको पढ़ रहे हैं और अपना विचार रख रहे हैं. उससे आपको क्या फायदा हो रहा है ? जो फायदा हो रहा है, वही फायदा हमें भी हो रहा है. कुछ समझे.

Language: Hindi
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