फिजा
लेकर आई है फिजा, मेरे प्रिय को आज।
मैं दिल की कैसे कहूँ,आये मुझको लाज।। १
दीपक उर में प्रेम का, फिजा हुई सतरंग।
मिला सजन का साथ जब, निखरा गोरा अंग।
पुष्प फिजा में घोलती, इत्र पवन के संग।
बगिया मेरी रूह की, गई इश्क से रंग।। २
खिली-खिली-सी ये फिजा, मौसम मेहरबान।
पलट-पलट मैं देखती, पर वो हैं अनजान।। ३
महकी-महकी है फिजा, बहकी-बहकी रात।
आज वादियों में घुला, खुशियों की सौगात।। ४
जैसे खुश्बू फूल में, घुला फिजा में प्यार।
दिल की धड़कन में बसे, वैसे ही दिलदार।। ५
महकी है सारी फिजा, बहकी मेरी चाल।
प्रियतम से नजरें मिली, हुई शर्म से लाल।। ६
आज फिजा में हो रही, मधुर-मधुर झंकार।
चमन-चमन खिलने लगी, आशा, तृष्णा, प्यार।। ७
सुखद सुहानी-सी फिजा, कर सोलह श्रृंगार।
आज वादियों में घुला, तेरा मेरा प्यार।। ८
ख्वाब चुरा लेगे सभी, फिजाओं से बहार।
तेरे खातिर साजना, मेरी जान निसार।। ९
निखर गया सारी फिजा, खिला चमन गुलकंद।।
मन मतवाला -सा हुआ, उड़ने लगा स्वछंद।। १ ०
आज फिजाओं में भरा, इन्द्रधनुष का रंग।
मन पंछी बन उड़ चला, प्रियतम तेरे संग।। १ १
भींगा-भींगा वादियाँ, गीला-गीला अंग।
कुदरत भी जाये बहक, देख फिजा का रंग।। १२
याद दिलाती है फिजा, बीते दिन की बात।
प्रेम पुष्प अनुराग से, भरा सभी जज्बात।। १ ३
प्रेम सुधा घुलने लगी, हुई फिजा मदहोश।
मन कस्तूरी ढ़ूँढ़ती, प्रियतम बिन खामोश।। १४
जर्रा-जर्रा खुशनुमा, फिजा में जल तरंग।
मौसम की प्यारी अदा, मन में भरे उमंग।। १ ५
पुष्प फिजा में खिल उठे, भंवरे उड़े अनंत।
ऐ! दिल संभल जा जरा, आने लगा बसंत।। १६
लक्ष्मी सिंह