फाल्गुनी सवैया
क्यों आज वासंती बेला में, ऋतूराज हृदय को सोहन आये।
यूँ तो जो छलिया न हाथ लगे, ले हाथ गुलाल वो रोहन आये।।
ज्यों अधरों की प्यास बढ़ी, भँवरा कलियन को टोहन आये।
रास की बास से मुग्ध करन, मन मोहन को मनमोहन आये।।
आज नही रसिया के बस में, आज उन्हें खूब तंग करेगी।
गिन गिन विरह के दिन जो काटे, बातें वो सारी संग करेगी।।
दे के उलाहने बिन मन वाले, रूठने की हर ढंग करेगी।
मान मन्नुवल के ही बहाने, फिर से सखा अतरंग करेगी।।
फाल्गुन के इस बेले अनोखे, दृश्य पटल पर छाई रही है।
नील गुलाबी लाल गुलाल, सखियां अम्बर उड़ाई रही है।।
आज ये सौतन मानत नाही, वंसी की धुन पर गाई रही है।
रास के पावन ताल पे देखो, कान्हा को कैसे नचाई रही है।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १८/०२/२०२२)