फागुन
फागुन
किरीट सवैैया छंद
211×8
गोकुल में प्रभु रास रचावत गोपिन ग्वाल धमाल मचावत।
होठ धरी मुरली मन भावत छीन सखी तरु शाख लुकावत।
फागुन की रुत देख सखा सब माखन की मटकी लटकावत।
रंग छटा बिखरी जब गोकुल गोपिन ग्वाल गुलाल लगावत।।
गोर कलाइन ले पिचकारिन ठीट सखी सब श्याम खिझावत।
अंग भिगो चित चोर लियो तुम कूल तरंग प्रसंग सुनावत।
साँवरि सूरत मोहनि मूरत श्याम सखा उर चैन चुरावत।
नंद लला ‘रजनी’ सुख पावत मातु यशोमति नेह लुटावत।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
संपादिका-साहित्य धरोहर
वाराणसी