फागुन के महीना बा
फागुन के महीना बा, मन मोर भइल हमरो।
निर्मोही भइल साजन, दिल तोड़ गइल हमरो।
सब ओर बा हरियाली, गदराय गइल सरसों।
परदेस गइल बालम, अब बीत गइल बरसों।
मधुमास बितल जाला, पतझड़ न गइल मन के|
बड़ याद सतावेला, फगुआ में हो प्रियतम के।
अब हाय कहीं के से, दिल के इ परेशानी।
होली में बिना साजन, कइसे इ हृदय मानी।
सखियन के हँसी हमरा, बस कांँत नियन लागे।
ई भागि कहाँ रामा , बिरहिनि के कबो जागे।
ना आस बचल बाटे, ना प्यास बचल बाटे।
अइबऽ तू कबो इहवाँ, विश्वास बचल बाटे।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य