फागुनी है हवा
** मुक्तक-१ **
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बादलो झूम कर आज बरसो जरा।
रंग हर ओर का कीजिए अब हरा।
ग्रीष्म की है तपन जब बढ़ी जा रही।
तृप्त कर दीजिए शस्य श्यामल धरा।
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** मुक्तक-२ **
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फूल सुन्दर सभी ओर खिलने लगे।
लहलहाते हुए सब महकने लगे।
तितलियां आ गई पास में मनचली।
गीत गाते भ्रमर खूब दिखने लगे।
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** मुक्तक-३ **
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प्यार के स्वप्न मन में सजाते रहे।
और मन में सहज मुस्कुराते रहे।
आ गया सामने आईना जब कभी।
क्यों भला जुल्फ मुख पर गिराते रहे।
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** मुक्तक-४ **
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मौन जब से लुभाने लगा आपको।
स्नेह कोमल रिझाने लगा आपको।
अब छलकने लगे हैं कलश भाव के।
तब गगन में उड़ाने लगा आपको।
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** मुक्तक-५ **
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फागुनी है हवा मन मिले जा रहे।
पर्व होली मगन सब दिखे जा रहे।
रंग हैं स्नेह के इंद्रधनुषी बहुत।
देखिए सब दिलों में बहे जा रहे।
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** मुक्तक-६ **
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बात कह दो लगाओ नहीं देर अब।
फिर न जाने मिलेगा सही वक्त कब।
फागुनी प्रिय हवा है बही जा रही।
हर्ष होगा मिलेगा बहुत प्यार जब।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हिमाचल प्रदेश)