फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
22 22 22 22 22 22
वस्ल की रात में,छाई कैसी तन्हाई है
स्याह अंधेरे में ,ये किसकी परछाई है
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उनसे चाह के मांगना भी तो नहीं था मुमकिन
अब तो बस खुलासा है बेख़ौफ़ उसकी सफाई है
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नक्शे पा उसके, कभी अनदेखा नहीं किया
हमे कारवां में गुम, देती रही दिखाई है
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आज बिना डर के भरो, घर का खाली खजाना
कल नहीं हो फिर इस दौर सी, काली कमाई है
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मेहदी रची हाथ में, कलाई भरी हैं चूड़ियां ,फिर
जिंदगी क्या तेरी कीमत, कितनी मुँह दिखाई है
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग