फ़ुर्क़त
फ़ुर्क़त
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‘फुर्क़त’ में वेदना बसे; यही चपल-मन को डसे।
विरह में कुछ न भाए; दर्शन ही बिछोह भगाए।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°?°°°°°°°°°°°°°°°°°°
#स्वरचित सह मौलिक;
……..✍️ पंकज कर्ण
……………कटिहार।
फ़ुर्क़त
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‘फुर्क़त’ में वेदना बसे; यही चपल-मन को डसे।
विरह में कुछ न भाए; दर्शन ही बिछोह भगाए।।
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#स्वरचित सह मौलिक;
……..✍️ पंकज कर्ण
……………कटिहार।