“फ़ितरत”
“फ़ितरत”
गिरगिट से रंग बदलती
मुहब्बत को गैर के साथ
देख कर
आँखों से बहता
सैलाब कहने लगा–
“आज भीगे मेरे ख़त के
कुँआरे अल्फ़ाजों को
नहीं पढ़ पाओगे,
हाँ.. मुहब्बत की कश्ती
बनाकर देखना
शायद कहीं कोई
नया साहिल मिल जाए।”
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो. 9839664017)