फ़ितरत
वक़्त के साथ बदलती फितरत,
बदलती फितरत संग बदलती नीयत,
बदलती नीयत बदले मिजाज
और बदले मिजाज को नही फर्क
कभी सही और गलत से
और नही रहे इसकी उसे ज़रूरत।
बदलती फ़ितरत ने दोष दिया
हर सही गलत का प्रारब्ध को।
कर्म को नही कटघरे में खड़ा किया,
नही चाहत रही कभी आत्मचिंतन की
नही कभी स्वयं का आत्मविश्लेषण किया
और फिर टूट गयी हिम्मत।
फ़ितरत रही हर वक्त मुस्कुराने की
मुश्किलों को धता बताने की
हौसलों की मजबूत पंख फैला कर
बुलंदियों को छू जाने की।
हारकर थककर चूर होकर भी
फ़ितरत सदा ही रही मजबूत बन जाने की।
वक़्त के साथ बदली सबकी फ़ितरत,
मगर नही बदली कभी मेरी नीयत।
यही जीवन में बने मेरी हिम्मत
यही मेरी सबसे बड़ी जरूरत।