फितरत!
फ़ितरत!( विषय)
शीर्षक:मेरी फितरत, तेरी फितरत!
विद्या:स्वतन्त्र(काव्य)
फितरत तेरी भी अजब है।
फितरत मेरी भी अजब है।
फितरत तेरी भी गजब है।
फितरत मेरी भी गजब है।
तूने किया वादा जिंदगी का,
पर चार कदम भी न चला।
मैं थी इतनी मासूम…
न समझी तेरी चालाकी।
तेरे झूठ और फ़रेब का,
मुझे पता भी न चला।
कितने सपने दिखाए तूने,
हर सपना तोड़ दिया।
बनकर संगी मेरा,
संग मेरा दो पल में छोड़ दिया।
“बदल दूंगा रुख़ हवाओं का” कहकर,
तूफानों का रूख मेरी तरफ मोड़ दिया।
सितारों से माँग भरने की खाई कसम।
कहा मुझे अपना दिल,अपना सनम।
तेरे लिए प्रिया,छोड़ दूं दुनियादारी,
निभाऊं बस हर दिल की रस्म।
कैसी फ़ितरत निकली तुम्हारी,
जो दौलत की प्यासी थी।
धोखा,फ़रेब ही तेरी फ़ितरत,
तेरी हर बात बासी थी।
तू बेवफा और मैं बावफ़ा की मूरत,
जाते-जाते न देखा तूने ये तक…
कि मेरे चेहरे पर उदासी थी।
तेरी फ़ितरत में था,न याद करना,
और मेरी में,भुलाना नहीं है।
तेरी फ़ितरत में था ,न फरियाद करना,
और मेरी में सनम,रुलाना नहीं है।
न करोगे तुम मुझे याद,
पर मैं तुम्हें याद करूँगी।
तुझे पाने की पल-पल,
मेरे सनम फरियाद करूँगी।
तेरे लौटने की राह पर,
नयन धरती हूँ।
तेरी फितरत गर तेरा आसमां,
तो मैं भी अपनी फितरत की धरती हूँ!
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
भावार्थः – न फ़ितरत कभी बदली,
न कभी बदलती है।
इस शय पर न कभी,
कोई बात चलती है!