”फ़ासला बेसबब नहीं आया,
”फ़ासला बेसबब नहीं आया,
दूर तुम भी तो हो गये हमसे ।”
“ज़ीस्त को वक़्त कितना दे पाये,
आप खुद से भी कुछ सवाल करें।”
“कुव्वत-ए-सब्र का हुनर देना।
फिर बिछड़ने की तुम खबर देना।”
जिंदगी तुझसे यहाँ कौन कटा होता है।
दर्द हर सांस के हिस्से में बय होता है।
“जो हाले-दिल है जुबाँ से मैं कह न पाऊं कहीं।
गुज़रते वक़्त के मानिद बह न जाऊं कहीं।”
“जो अक्स मुसव्विर है तू वैसा ही दिखाना,
मुश्किल है बहुत दर्द की तस्वीर बनाना ।
“रंजो- गम’ के जितने थे, लम्हें वो सभी गुज़रे,
आरजू है खुशियों की, अब ये जिंदगी गुज़रे।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद