फ़साने तेरे-मेरे
फ़साने तेरे-मेरे ये तन्हाँ दिल जलाते हैं
फ़साने तेरे-मेरे ये दर्द-ए-दिल जगाते हैं
मै सोचूँ मैं ही तन्हाँ हूँ
पर देखा तो है चाँद भी तन्हाँ
तन्हाँ चाँद से तन्हाई में
तन्हाँ दिल ही बतियाते हैं
तन्हाँ सागर के किनारे
तन्हाँ बहते झरने और नदियाँ
लहरों संग किनारे देखो
अपने दिल को बहलाते हैं
उड़ते हैं ये जुगनँ तन्हाँ
जलते तन्हाँ दीपक और तारे
तन्हाँ रातों में ये अक्सर
होश सम्भाले मुस्काते हैं
होते तन्हाँ हिम शिखर
खिले कमल किचड़ में तन्हाँ
तन्हाँ ‘विनोद’को जैसे ये
कोई तो संदेशा दे जाते हैं
फ़साने तेरे-मेेरे ये तन्हाँ दिल जलाते हैं
फ़साने तेरे-मेरे ये दर्द-ए-दिल जगाते हैं