फ़रियाद
इस कशमकश में
जिंदगी गुजर जाती है,
दिल टूटता है बार बार, फिर
नाउम्मीदी जहर घोल जाती है!
तंग – रिश्तों की भी
फरियाद होती है,
तुममें मैं, मुझमें तुम
गज़ब की प्यास होती है
बिखर न जाए जिए जो पल
उस उन्माद की भी मिठास होती है!
बिखर जाऊँ मैं कैसे अभी
तुम्हारी कमजोरियाँ जो साथ होती हैं,
बढ़ाकर हाथ अक्सर जो
वजूद थाम लेती हैं!
मिलो फिर भी! नादानियां;
अक्सर कुछ कर्ज चुकाती हैं!
कुछ इधर की कुछ उधर की
मुगालते पाल लेतीं हैं!
दिलों को थाम लो, कि
फिर कभी कहीं आह ना निकले
मुकम्मल जिंदगी का फिर कोई
सरोकार ना बिखरे!
बुरा है वक्त, फिर भी
यूं संभालो दिल को अपने
ताउम्र बे-पर्द रिश्तों को भी
रहमते मुकाम हासिल हो!
©अनिल कुमार श्रीवास्तव