फसाना मेरी चाहत का
फसाना मेरी चाहत का मिरे लब तक नहीं पहुँचा
लिखा था ख़त जमाने से मगर अब तक नहीं पहुँचा
ख़ुदा मिलना कहाँ आसां ये बोला वो फक़ीर आकर
था वो सजदे में बरसों पर कभी रब तक नहीं पहुँचा
था वादा रोशनी सूरज सी वो देगा सभी को पर
उजाला जुगनुओं का भी अभी सब तक नहीं पहुँचा
चला नाराज होकर घर से बेटा जब कभी ‘संजय’
नहीं चैन आया माँ के दिल को घर जब तक नहीं पहुँचा